सन्यासी को कैसा होना चाहिए ?

विशुद्धब्लॉग

पेड़ पर उल्टा लटका हुआ ?

लंगोट पहनकर जंगलों में ईश्वर को ढूँढता हुआ ?

गेरुआ में भीख मांगता हुआ ?

गीता और रामायण बाँचता हुआ ?

समाज से भागा हुआ लेकिन साधुसमाज में आश्रय लिया हुआ ?

जादू-टोना करने वाला या जादूगरी दिखाने वाला ?

गोल्डन, पायलट, लेपटॉप या मोबाइल बाबा जैसा ?

लोगों की गालियाँ सुनकर भी श्री श्री रविशंकर जी की तरह मुस्कुराने वाला ?

पुलिस के डर से सलवार कुर्ती डाल कर भागने वाला ?…..

क्या यही है सन्यास धर्म ?

सन्यासी को कैसा होना चाहिए अब वे ज्ञानी सिखायेंगे, जो अपने बच्चों को मर्यादा, सभ्यता और राष्ट्रभक्ति नहीं सिखा पाए ?

वे ज्ञानी सिखायेंगे सन्यासी को कैसा होना चाहिए और कैसा नहीं, जो खुद अपने बच्चों को नहीं सिखा पाए शालीन भाषा और बड़ों के प्रति आदर का भाव ?

वे ज्ञानी सिखायेंगे सन्यासी को कैसा होना चाहिए जो नहीं सिखा पाए अपने सम्प्रदाय को…

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विशुद्ध चैतन्य द्वारा Uncategorized में प्रकाशित किया गया

संत कौन ?

विशुद्धब्लॉग

अक्सर लोग कहते हैं कि सन्यासी को ऐसा होना चाहिए या वैसा होना चाहिए | उसे यह करना चाहिए व वह करना चाहिए या यह खाना चाहिए या वह नहीं खाना चाहिए….यदि देखा जाए तो यह उन लोगों की समस्या है जो स्वयं से असंतुष्ट हैं और संन्यास का मूल अर्थ ही नहीं पता | यदि सन्यासी को सामाजिक तौर तरीके से ही रहना है तो फिर सन्यास लिया ही क्यों जाए ? फिर तो वह किसी भी संस्था में चला जाए और उनके नियम कानून को अपना ले जिनके नियम उसे अच्छे लगते हैं ? सन्यास स्वमर्यादित मुक्ति है, न कि कोई बंधन |

मेरी समस्या यह है कि सन्यासी को क्या खाना चाहिए और कैसे रहना चाहिए अब वे लोग सिखायेंगे, जो स्वयं अपनी मर्यादा नहीं जानते ? जो दूसरों की संपत्ति पर निगाह गड़ाए रहते हैं ? जो दूसरों के आय और बैंक पर लार टपकाते घूमते…

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विशुद्ध चैतन्य द्वारा Uncategorized में प्रकाशित किया गया

जब तक आप स्वयं से परिचित नहीं होते, तब तक आप भटकते रहते हैं स्वयं की खोज में….

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Since age seven, fifth-grader Shyanne Roberts has had one passion – firing guns.

Now aged 10 she has become a sensation in competitive shooting tournaments across the United States, using a weapon painted in her favorite colors, purple and black. And despite the perceived dangers, the Franklinville, New Jersey, girl believes: ‘Kids and guns don’t always mean bad things happen.’

बहुत ही कम लोग ऐसे होते हैं, जिनके माँ-बाप समझदार होते हैं | या फिर वे सौभाग्यशाली लोग होते हैं, जो अपने लक्ष्य के प्रति सचेत रहते हैं और अपने माँ-बाप को चुनने का अवसर ईश्वर उन्हें देता है | कुछ लोगों को माँ-बाप सहयोगी न भी मिले तो परिवार या वातावरण ऐसा मिल जाता है, जिससे उन्हें अपने पूर्वजन्म के अधूरे सपने को पूरा करने में सहयोग मिलता है | ऐसे लोग बचपन से ही अपने लक्ष्य के प्रति सजग रहते हैं और किसी प्रकार की दुविधा में नहीं…

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क्या कायरों और पलायनवादियों को ब्रम्ह या मोक्ष उपलब्ध हो सकता है कभी ?

Bodhidharman

बोधिधर्मन

Bodhidharma was a Buddhist monk who lived during the 5th or 6th century CE. He is traditionally credited as the transmitter of Ch’an (Sanskrit: Dhyāna, Korean: Seon, Japanese: Zen) to China, and regarded as its first Chinese patriarch. According to Chinese legend, he also began the physical training of the Shaolin monks that led to the creation of Shaolinquan.

– Courtesy: wikipedia

बोधिधर्मन वह नाम जो भारत से निकला और चीन पहुँचा और जाना जाने लगा बोधिधर्मा के नाम से | बुद्ध की अहिंसा की शिक्षा का प्रचार प्रसार करते हुए बोधिधर्मन ने जो महत्वपूर्ण शिक्षा दी वह यह कि अहिंसा का अर्थ कायरता नहीं है | सन्यास का अर्थ निष्क्रियता नहीं है | धार्मिक होने का अर्थ अधर्मियों के सामने नतमस्तक होना नहीं है | ईश्वर प्राप्ति का मार्ग असहाय, निर्बल और भाग्यवादी होना नहीं है |

उन्होंने चिकित्सा के साथ आत्मरक्षा और अत्याचार का विरोध करने की शिक्षा दी | उन्होंने स्वयं को शारीरिक व मानसिक रूप से सक्षम बना कर असहायों की अत्याचारियों से रक्षा करने की शिक्षा दी |

लेकिन दुर्भाग्य से हमारे ही देश के इन महान व्यक्तित्व के आदर्श को हम नहीं अपना पाए | हमने सन्यास लिया मुसीबतों से छुटकारा पाने के लिए | हमने सन्यास लिया हरामखोरी के लिए | हमने सन्यास लिया अपनी कायरता को छुपाने के लिए | हमने सन्यास लिया क्योंकि मृत्यु से हमें भय लगता है….. इसलिए हम मोक्ष पाना चाहते हैं, इसलिए हम ब्रम्ह को उपलब्ध होना चाहते है, इसलिए हम जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति चाहते हैं…. | क्या कायरों और पलायनवादियों को ब्रम्ह या मोक्ष उपलब्ध हो सकता है कभी ?

कुछ लोग निडर व साहसी होने का ढोंग करते हैं | वे किसी निर्बल असहाय की सहायता करने के लिए कभी आगे नहीं बढ़ते लेकिन परधर्म निंदा, जातिवाद, नेतावाद, पार्टीवाद में बढ़ चढ़कर भाग लेते हैं | वे भीड़ में मुँह छुपाकर निकलते हैं और निर्बलों, निशस्त्रों, अबलाओं पर अत्याचार करते हैं | वे धर्म की ओट में द्वेष के बीज बोते हैं और आपस में फूट डालते हैं | ऐसे लोगों से सावधान रहने की आवश्यकता है | इन लोगों को न तो धर्म व समाज का कोई ज्ञान होता है और न ही राष्ट्र व मानवता के हितार्थ कोई कार्य कर पाते हैं कभी |

कोई गृहस्थ है या बैरागी, यदि वह केवल अपने स्वार्थ (मोक्ष, ब्रम्ह, ईश्वर की प्राप्ति…आदि) या केवल अपने बीवी-बच्चे अपने परिवार के विषय में ही चिंतन कर रहा है तो वह न तो धार्मिक है और न ही सन्यासी | यह माना जा सकता है कि उसका पशु योनी से मानव योनी में अभी आगमन हुआ है और कई जन्म अभी और लेना पड़ेगा उसे मानवता को समझने में व मानव होने में | ऐसे लोगों के लिए मोक्ष व ब्रम्ह तो बहुत दूर की बात है जो अभी मानव ही नहीं बन पाए | क्योंकि अपने और अपने परिवार के लिए तो पशु भी जी लेते हैं और बच्चों की देख-रेख व शिक्षा हर पशु पक्षी ऐसे मानवों से कई गुना अधिक अच्छी तरह कर लेते हैं |

लेकिन यदि कोई मानव दूसरों के साथ सहयोगी का भाव रखता है तो वह गृहस्थ होते हुए भौतिक सुख भोगते हुए भी सन्यासी है | ~विशुद्ध चैतन्य

 

Martial Art

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आज अकेले ही सही

सुप्रभात शुभ आत्मन | आप सभी के लिए आज का दिन मंगलमय हो !

1623711_285481261576530_1639337126_nकहते हैं कि ज्ञान हमें विनम्र बनाता है | कहते हैं कि धर्म हमें अहंकार से मुक्त होने में सहायक होता है व सभी के लिए प्रेम का भाव उत्पन्न करता है |

लेकिन मैंने जो अनुभव किया वह यह कि जिस ज्ञान से व्यक्ति में विनम्रता आ सकता था वह विलुप्त हो गया और उसके स्थान पर व्यावहारिक व भौतिक ज्ञान का महत्व बढ़ गया | व्यावहारिक में भी अंग्रेजी, कॉमर्स व साइंस जैसे विषय की अब ज्ञान के पर्याय बन चुके हैं |

धर्म व्यक्ति को कितना उपद्रवी व अहंकारी बना देता है वह इस पोस्ट के साथ लगी तस्वीर से पता चलता है | धर्म के नाम पर धमकी देने से लेकर दूसरों को उकसाने व लड़ाने तक के काम हो रहें हैं लेकिन सभी कुछ धर्म के ठेकेदारों के नजर में वैध हैं | क्योंकि उनके लिए धर्म राजनैतिक व आर्थिक स्वार्थपूर्ति का माध्यम मात्र है न कि समन्वयता व सौहार्द की भावना का विकास | इनका सारा रुझान इस बात पर रहता है कि कैसे देश में दंगा भड़के और लोगों की चिताओं और लाशों के पर राजनीति करके अपने स्वार्थ की रोटियां सेंकी जा सके |

तो, न ज्ञान से विनम्रता आती है और न धर्म से मानवीय प्रेम व सौहार्द की भावना विकसित होता है | इसलिए जो लोग स्वयं को ज्ञानी मानते हैं वे या तो अहंकारी होंगे या कायर | जो लोग स्वयं को धार्मिक मानते हैं, वे या तो अत्याचारी या दंगाई होंगे या कायर | पर मानवीय गुण उनमें विकसित होने में कई जन्म और लगेंगे |

इसलिए आज मैं स्वयं को भाग्यशाली मानता हूँ कि उसने न तो मुझे ज्ञानी बनाया और न ही धार्मिक | उसने मेरे लिए आध्यात्म का मार्ग चुना और मुझे प्रेरित किया कि मैं ज्ञानी या धार्मिक भेड़ों के झुण्ड से अलग एकांत वास कर आत्मसाक्षात्कार करूँ | उसके बाद अन्तः प्रेरणा से जो उपयुक्त लगे उस दिशा में बढ़ूँ न कि भेड़ों के झुण्ड के साथ झूठी धार्मिकता व ज्ञान के नारे लगाऊँ |

मैंने अतःप्रेरणा से जनकल्याण का जो मार्ग चुना है वह अन्य राजनैतिक व आर्थिक लाभ के उद्देश्य से बने जनकल्याण संगठनों से पुर्णतः अलग है | मैं जिस संस्था की नींव रखने जा रहा हूँ उसमें स्वार्थी, व्यवसायी, राजनैतिक व तथाकथित कट्टर धार्मिक मानसिकता के व्यक्तित्वों के लिए कोई स्थान नहीं होगा | यह एक ऐसी संस्था होगी जिसका उद्देश्य राजनीतिज्ञों को लाभ पहुँचाना नहीं, अपितु राष्ट्र को सबल व आत्मिनिर्भर बनाना होगा | राष्ट्र को आत्म-निर्भर बनाने का अर्थ यह नहीं कि मैं स्वयं भूखा नंगा रहूँगा या संस्था में कार्यरत लोगों को केजरीवाल या गांधी जैसा आम आदमी का मुखौटा डालकर घूमना पड़ेगा | इस संस्था में सभी समान रूप से विकसित होंगे लेकिन सहयोगी भाव के साथ विकसित होंगे |

यदि एक के पास धन है तो वह धन से सहयोग करेगा और दूसरे के पास बल है तो वह बल से सहयोग करेगा | चूँकि केंद्र में संस्था रहेगी इसीलिए न धनवान बलवान का दुरुपयोग कर सकेगा और न ही बलवान धनवान का दुरूपयोग कर सकेगा | यह संस्था सदस्यों को धन या बल के आधार पर नहीं, आध्यात्मिक व राष्ट्रीय चिंतन के आधार पर सदस्य के रूप में मनोनीत करेगी |

आज मैंने निश्चय कर लिया है कि शीघ्रातिशीघ्र इस संस्था की नींव रख दी जाए व अब उस विशिष्ट व्यक्ति की प्रतीक्षा (जिसकी प्रतीक्षा में बचपन से करता रहा) न कर अपने उद्देश्य को साकार रूप दे दूं | हो सकता है कि वह विशिष्ट व्यक्ति ने इस बार मेरे साथ जन्म नहीं लिया और अगले किसी जन्म में उससे भेंट हो जाए | तब मेरे उद्देश्य को बल व उत्साह मिल जाए | लेकिन अभी कम से कम मैं और प्रतीक्षा नहीं कर सकता |

लेकिन आशा करता हूँ कि अगले जन्म में उसका साथ मिल जाएगा इस संस्था को सम्पूर्ण सामर्थ्य व प्रभाव के साथ काम करने योग्य होने के लिए | तब तक मैं अपने आसपास के ग्रामीणों को ही जितना हो सके लाभ पहुँचाने का प्रयत्न करूँगा |-विशुद्ध चैतन्य

नेकी कर दरिया में डाल

Neki Kar dariya mein daalअक्सर जब बात होती है हक़ की तो कहा जाता है कि मांगने से नहीं मिलता, छीनना पड़ता है | जब छीनने की परंपरा पर हम अपना पैर रख देते हैं तो कल कोई हमसे छीन लेगा क्योंकि हम उसी की कड़ी में हैं | लेकिन यदि हम सहयोगी होने की परम्परा को अपनाएँ तो हम उस कड़ी में जुडी जाते हैं जहाँ से छीनने वाला ही हानि उठाएगा |

उदाहरण के लिए आपके पास चार रोटियाँ तो है, लेकिन सब्जी नहीं है | हो सकता है कि किसी के पास सब्जी हो लेकिन रोटी न हो | आप बिना सब्जी के रोटी खाकर भी पेट भर सकते हैं और दूसरा केवल सब्जी खाकर भी पेट भर सकता है | इसमें कोई समस्या नहीं है |

यदि आप केवल इतना सोच पायें कि यदि एक रोटी कम खाता हूँ तो कोई बहुत बड़ी समस्या नहीं खड़ी होगी, लेकिन जिसके पास केवल सब्जी ही है उसका पेट तो उस सब्जी से नहीं भरेगा | इसलिए यदि एक रोटी उसे दे देता हूँ तो उसका भला हो जाएगा | आप उसे एक रोटी दे देते हैं और हो सकता है कि वह आपको वापस धन्यवाद भी न दे | क्योंकि हो सकता है कि भूख के कारण वह कुछ और न सोच पाए | लेकिन अगली बार जब उसे सब्जी मिलेगी तो वह आपको अवश्य ढूँढेगा क्योंकि प्रकृति ने यह नियम निश्चित किया हुआ है कि यदि कोई निःस्वार्थ किसी का सहयोग करता है तो उसे भी सहयोगी मिल ही जाएगा |

हो सकता है कि भविष्य में वह व्यक्ति आपको न मिले लेकिन कोई दूसरा व्यक्ति आपको अवश्य मिल जाएगा जो आपको सब्जी दे जाएगा और मुड़कर भी नहीं देखेगा |

अपने ही जीवन की एक घटना बताता हूँ |

उन दिनों मैं कभी बस स्टेशन और कभी रेलवे स्टेशन में सोता था तो कभी फुटपाथ पर | कहीं भंडारा होता तो खा लेता और नहीं तो हफ्ते भर तक कुछ नहीं मिलता था खाने को | भीख माँगना, चोरी करना, किसी से कुछ छीनना हमारे वंश की परम्परा कभी रही नहीं, इसलिए भूखे मरना मंजूर था, लेकिन भीख मांगने का साहस नहीं जुटा पाया कभी | कई दिनों तक कहीं नहाने की व्यवस्था न हो पाने के कारण और भूख के मारे मुझाये चेहरे से मैं खानदानी भिखारी दिखने लगा था |

तो उसी समय की बात है कि मैं एक मंदिर में बैठा हुआ था और एक सभ्रांत परिवार मेरे पास आया और दो ब्रेड पकौड़ा और सब्जी दी और साथ ही हलवा भी दिया | महिला ने अपने पर्स से दस का नोट निकाला और वह भी मेरे हाथ में रख दिया | भूख के मारे आंते सिकुड़ चुकीं थी इसीलिए एक ही पकौड़ा खिलाया गया और हलुआ पूरा खा लिया | मैंने ईश्वर को धन्यवाद दिया और एक पकौड़ा बचा कर रख लिया कि रात के खाने में काम आएगा यदि भूख सहन न हुई तो वर्ना कल खाऊंगा |

मैं वहाँ से थोड़ी दूर एक पेड़ के नीचे बैठा दावत कि खुशियाँ मना रहा था कि एक भिखारिन अपने गोद में एक बच्चे को लिए मेरे पास आई और हाथ फैला दिया | मैंने उसे घूर कर देखा और बोला, “अरे मांगने के लिए मैं ही मिला हूँ …?” कुछ और कहता उससे पहले वह आगे बढ़ गई | समझ गई थी कि यहाँ कुछ नहीं मिलेगा |

लेकिन न जाने इस बीच मेरे भीतर से किसी ने कहा कि तेरे पास जो दस रूपये हैं वह तो भीख में ही मिला है | क्या तू भिखारी हो गया जो भीख में मिले पैसे भी नहीं दे सका उसे ? तुझे भूख लगी थी तो खिला दिया और तू दस रूपये के लालच में आ गया ? कभी तू रुपयों की परवाह नहीं करता था लेकिन आज तुझे ये दस रूपये से मोह हो गया…. ? मैं तुरंत उठा और उस औरत को दस रूपये दे आया |

रात को स्टेशन में भटक रहा था हमेशा की तरह और सोच रहा था के ब्रेड पकौड़ा जो बचा है उसे अभी खाऊँ या कल | (यह भूख भी बहुत अजीब चीज होती है उसे पता होता है कि आपके पास कुछ खाने को बचा हुआ है और जब तक उसे हजम नहीं कर लेती शान्ति से बैठने नहीं देती)

अभी इसी उधेड़बुन में था तभी एक नव युवक आया और बोला कि कुछ खाना चाहते हो ? मैंने उसकी शक्ल देखी और पूछा कि भाई क्यों खिलाना चाहते हो और मैं तो तुम्हे जानता भी नहीं | वह बोला कि अकेले खाने की आदत नहीं है इसलिए पूछा | मैं कोई जवाब देता इससे पहले वह चला गया | मैं भी आगे बढ़ गया और लोगों को आते जाते देखने लगा और सोचने लगा कि सारी दुनिया भाग रही है न जाने कहाँ पहुँचाना चाहती है…. इसी बीच वही युवक मुझे अपने बिलकुल सामने नजर आया और बोला जल्दी पकड़ो जल्दी पकड़ो बहुत गर्म है… मैंने देखा उसके हाथ में गरमा गरम नान और सब्जी के दो पत्तल हैं | मैंने एक पत्तल ले ली और दोनों वही एक शांत जगह देख कर बैठ गये | खाना ख़त्म होने के साथ ही वह बोला कि अभी यहीं रुको और वह चला गया | थोड़ी देर बाद फिर आया नान और सब्जी के साथ | उसने अपना खाना जल्दी ख़त्म कर लिया लेकिन मेरे खाने की प्रेक्टिस छूट गयी थी, इसलिए मैं धीरे धीरे खा रहा था तो काफी अभी बचा हुआ था | उसने पूछा कि और खाओगे ? मैंने मना कर दिया | उसने बोला अच्छा चलता हूँ मेरी ट्रेन आने का समय हो गया और वह हाथ हिला कर चला गया |

यह घटना मेरे उस विश्वास को बल देने में सहयोगी हुआ कि यदि आप किसी के लिए बिना कामना किये कुछ करते हैं तो कोई दूसरा भी आपकी ही तरह इस दुनिया में होगा जो आपसे जल्दी ही मिलेगा | और आज तक मेरे साथ ऐसा ही होता आ रहा है |

जरा सोचिये यदि मैं दस रूपये बचा लेता तो दस रूपये में कितना खाना मिलता मुझे दिल्ली जैसे शहर में ? -विशुद्ध चैतन्य

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ब्रम्हराक्षस

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चुन्नुमल घुन्घुनियाँ एक बहुत ही प्रतिष्ठित व्यापारी थे | देश विदेश में उनका व्यापार फैला हुआ था | करोंड़ों का लेन देन चलता था उनका | व्यस्त इतने रहते थे कि आँख खुलते ही काम पर लग जाते और आँख बंद होने तक काम करते रहते थे | चारों ओर जयजयकार था उनका |

लेकिन चुन्नुमल खुश नहीं थे | कारण था राजकोष से लिया गया कर्ज जो उतर ही नहीं रहा था | हर दूसरे दिन राजा का कोई आदमी आ जाता था तकाजा करने के लिए | बेचारे जितना अधिक काम करते उतना ही व्यापार बढ़ता लेकिन कर्जा वहीँ का वही रहता | सेठ जी ने कई ज्योतिषी और पंडितों को कुंडली दिखवाई हवन करवाए लेकिन राहत नहीं मिल रही थी |

उधर उनकी धर्म पत्नी अलग मुँह फुलाए रहती थी कि कभी हमारी शक्ल भी देख लिया करो, कहीं ऐसा न हो कि मैं मर जाऊं और तुम मुझे पहचान भी न पाओ और आग लगा आओ किसी और की चिता को | बच्चों की की शक्ल तो उसे याद ही नहीं थी |

एक दिन उस नगर में एक बहुत ही पहुँचे हुए संत पहुँच गए | वैसे भी पहुँचे हुए लोग ही पहुँचते हैं, सो पहुँच गए संत उस नगर में भी | सेठ जी को पता चला तो बड़ी मुश्किल से थोड़ा समय निकाल कर रात में पहुँचे जब सब लोग जा चुके थे और संत सोने की तैयारी में थे | बहुत अनुनय विनय के बाद संत उनसे मिलने को तैयार हुए |

सेठ जी ने अपनी समस्या उनको बताई कि कैसे वह इतना मेहनत करते हैं और फिर भी सभी दुखी रहते हैं और धनलाभ भी नहीं हो रहा |कर्जे बढ़ रहें हैं सो अलग |

संत ने ध्यान से सारी बातें ध्यान से सुनी और अपनी आँख बंद कर कुछ देर ध्यान लगाने के बाद बोले, “समस्या तो बहुत ही गंभीर है और एक बहुत ही शक्तिशाली ब्रम्हराक्षस का साया पड़ा हुआ आपके पीछे |”

“क्या बात कर रहें हैं आप महाराज ???” सेठ जी ब्रम्हराक्षस का नाम सुनते ही थर-थर काँपने लगे |

“मैं ठीक कह रहा हूँ और मैं तो उसे अभी भी तुम्हारे पास ही खड़े देख भी रहा हूँ |” संत ने सेठ के दाहिने ओर इशारा करते हुए कहा |

सेठ जी जहाँ बैठे थे वहाँ से उछल कर सीधे संत के चरणों में आ गिरे, “मुझे बचा लीजिये महाराज मैं और मेरा परिवार बर्बाद हो रहें है | आप जितना भी धन मांगेंगे मैं देने को तैयार हूँ |”

“अगर धन से ही समस्या सुलझ जाती तो पहले ही नहीं सुलझ गई होती ? इसके लिए कम से कम छः महीने की तपस्या करनी होगी और वह भी आपको अपने पुरे परिवार के साथ | इसके अलावा और कोई उपाय नहीं है |

“महाराज लेकिन मेरा व्यापार संभालेगा कौन ? मैं तो एक दिन क्या एक घंटे के लिए भी छुट्टी नहीं ले सकता तो छः महीने की तो सोचना भी असंभव है |” सेठ ने अपनी असमर्थता जताते हुए हाथ जोड़े |

“ठीक है फिर जैसी प्रभु की इच्छा | आप जाइए अपना व्यापार संभालिये और ब्रम्हराक्षस तो आपको संभाल ही रहा है |” यह कहते हुए संत ने सेठ जी को एक माला दी और कहा कि इसे गले में डाल लो ताकि अकेले में डर न लगे |

सेठ जी बुझे मन से अपने घर लौट गए | घर पहुँच कर सारी बात पत्नी को बताई तो पत्नी के भी होश उड़ गए | बोली, “मुझे तो पहले ही शक था कि कुछ तो गड़बड़ है क्योंकि इतना हवन करवाने के बाद भी हमारे घर में शान्ति नहीं है तो बड़ी मुसीबत ही होगी |”

तब तक नौकर खाना लेकर आ गया लेकिन अब खाना कहाँ खिलाया जाता ? सेठ जी बार बार अपनी दाहिने और देखते कि कहीं ब्र्म्हराक्शस न दिख जाए | थोड़ी देर बाद पत्नी बोली “चलिए जी उठिए अभी चलते हैं स्वामी जी के पास |”

“अभी ??? इतनी रात में ???” सेठ जी चौंक कर बोले |

“जी हाँ अभी !!!” और सेठानी ने सेठ जी का हाथ पकड़ कर खींचा और घर से बाहर आ गए | थोड़ी देर बाद स्वामी जी के पास पहुंचे और उन्हें नींद से जगाने के लिए क्षमा मांगते हुए सेठानी ने तपस्या में जाने के लिए स्वीकृति दे दी |

संत ने सेठ जी से पूछा कि जब आप सपरिवार बाहर जा रहें हैं तो व्यापार की जिम्मेदारी किस पर सौंप कर जायेंगे ?

सेठ जी बोले कि बर्बाद तो हम हो ही रहें हैं और यदि यह तपस्या नहीं की तो हमारा परिवार भी नहीं बचेगा इस ब्रम्हराक्षस से | इसलिए जाना तो आवश्यक है ही | चूँकि और कोई उपाय नहीं है इसलिए मैं अपने मैनेजर को ही सारी जिम्मेदारी सौंप कर जाऊँगा |

“क्या वह इतना विश्वसनीय है कि आपके लौटने तक सब संभाल ले ?” संत ने फिर पूछा |

“महाराज मैंने कभी किसी पर विश्वास नहीं किया लेकिन मैनेजर ही सबसे पुराना आदमी है और अभी तक उसके विरुद्ध कोई शिकायत भी नहीं सुनी मैंने |” सेठ अपनी विवशता जताते हुए बोले |

“सोच लीजिये फिर से एक बार | क्योंकि हो सकता है आपके जाने के बाद सारा व्यापार चौपट कर दे या फिर सब कुछ हडप कर कहीं और भाग जाए ?”

“नहीं महाराज ऐसा तो वह शायद नहीं करेगा लेकिन कर भी सकता है |” सेठ जी की आखों में परेशानी झलक रही थी |

“देखिये यदि आप तपस्या पर निकले और आपका ध्यान यहाँ व्यापार की तरफ रहा तो कोई लाभ नहीं होने वाला | यह एक बहुत ही कठोर तपस्या है और बहुत ही कम लोग इस तपस्या में सफल हो पाते हैं | इसलिए सोच लीजिये कि क्या करना है ? व्यापार या तपस्या ? संत ने फिर पूछा

“तपस्या !!!” सेठ और सेठानी दोनों एक स्वर में बोले |

संत ने उनको तपस्या के कुछ नियम बताये और आशीर्वाद देकर उन्हें विदा कर दिया | छः महीने बाद जब वे लौटे तो सेठजी पूरी तरह से बदले हुए थे | उनका पूरा परिवार खुश था | जब सेठ जी ने अपने व्यापार के विषय में जानकारी ली तो पता चला कि राजा का सारा कर्ज भी चुकता हो गया और दूसरे सारे कर्ज भी समाप्त हो चुके थे |

नोट: अब आप बताएं कि संत ने तपस्या के लिए कौन सी विधि बतायी थी कि सारी समस्या सुलझ गयी ?

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क्यों सोचता हूँ मैं….????

“कभी कभी सोचता हूँ कि क्यों सोचता हूँ …???

1016386_661805957198601_1713435344_nजीवन के दो पहलू हैं और जीवन सभी तो जी ही रहें हैं |

किसको किसकी चिंता है ?

साधना करना कहीं व्यक्तिगत है तो कहीं व्यवसाय है |

भीख माँगना कहीं विवशता है तो कहीं व्यवसाय है |

जिस्म बेचना कहीं विवशता है तो कहीं व्यवसाय है |

भूखा रहना कहीं धनाभाव की विवशता है तो कहीं राजनैतिक लाभ के लिए अनशन है |

मानव जीवन अब केवल दो धरातल पर ही टिका है विवशता और व्यवसाय |

जो इन दो से अन्यथा सोचता है वह मेरी तरह पागल हो जाता है |

जिसकी बातें किसी की समझ में नहीं आती और लोग कहते हैं कि अपना इलाज करवाओ |”

-विशुद्ध चैतन्य